जनदर्पण
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बनती है हर साल सड्के ,फिर भी खस्ताहाल सड्के,काले बाद्ल बरस जाये जो,तो हो जाती है तालाब सड्के,देश के ठेकेदारो से करती है कुछ सवाल सड्के,क्यो बनाते हो, कैसे बनाते हो, क्या मिलाते हो ,खुद कितना खाते हो,कितना मुझे खिलाते हो, हर साल क्यो हूं मै बदहाल सड्के ।
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