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भ्रस्टाचार का विकार

जनदर्पण
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समय करवट ले रहा है, चाहे वह राजनीति हो या लोकताँत्रिक व्यवस्था, हमारे निकाय हों,या कोई और क्षेत्र, सब जगह महत्वपूर्ण मंथन चल रहा है जिसके अंकुर भूतकाल में पड़ चुके हैं। आज जब चारों ओर भ्रष्टाचार से त्राहि-त्राहि मची है तो वहीं दूसरी ओर हमारे राजनेता और नौकरशाह भी कम भयभीत नहीं हैं। एक तरफ बाबा रामदेव का काले धन के खिलाफ छेड़ा गया आन्दोलन तो दूसरी तरफ अन्ना द्वारा सिविल लोकपाल विल के लिए छेड़ी गयी मुहिम तो तीसरी तरफ कैग की रिपोर्टें ने राजनेताओं और नौकरशाहों के नाक में दम कर रक्खा है, और उसपर मीडिया भी आये दिन जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर प्रश्नों को पूंछ कर डराता रहता है। रही सही कसर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित मुद्दों पर आये दिन इन्हें कटघरे मे खड़ा कर पूरा कर देता है।चुनाव सर पर है और सभी जन प्रतिनिधि को जनता के पास भी लौटना है, इसलिये चिंता जायज भी है। चुनाव खर्चों व आचार संहिता को लेकर चुनाव आयोग भी समय-समय पर अपनी कैंची चलाता रहता है। कुल मिलाकर लब्बो लूआब यह है कि जनता से ज्यादा जन-प्रतिनिधि व नौकरशाह परेशान हैं। जो संस्थाए आज तक आमजन के ज़हन में मात्र एक निकाय थीं,या हो सकता है, जन सामान्य को इनके बारे में शायद पता भी न हो, आज वे संस्थाएँ भी संविधान द्वारा प्रदत्त अपनी शक्तियों का प्रयोग कर अपनी सार्थकता सिध्द करने में लगी हैं । इन्हीं बातों को लेकर हम आने वाले समय मे ये उम्मीद कर सकते हैं,कि आने वाला कल हमें एक स्वच्छ समाज एवं स्वच्छ प्रशासन दे सकेगा। लेकिन इसके साथ- साथ जन सामान्य के सचेत होने का भी समय आ गया है,क्योंकि यदि हम राजनेता एवं नौकरशाहों से साफ-सुथरे छवि व पारदर्शी कार्य प्रणाली की अपेक्षा करते हैं,तो हमे भी विधि सम्मत कार्य व आचरण के लिए प्रतिबद्ध होना पडेगा। तभी भ्रष्टाचार के विरुद्ध छेड़ा गया आन्दोलन सकारात्मक परिणाम दे सकेगा।
(स्रोत- जनदर्पण ब्लाग)

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