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दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर बम बिस्फोट चीख,पुकार का द्र्श्य आंतक का फिर वही घिनौना रूप दर्शाता है। दिल्ली की उच्च अदालत होने के नाते माननीय सांसदों का वहाँ जल्द पहुँचना तो शुरु हो गया,थोड़ी देर में बयानबाज़ी भी शुरू हो जाएगी किसने किया इसके पीछे किसका हाथ है, एजेन्सियां जांच करेंगी बड़ी सख्ती से निपटा जायेगा ।आतंक से फिर थोड़े दिन बाद सब भूल जायेगें जांच चलती रहेगी वैसे तो सबूतों के अभाव में आतंकी बच जाते हैं यदि सजा हो भी जाय तो उन्हे हम मेहमान बनाकर खातिर करते हैं और उनके लिये भी मानवाधिकारों की बात करते हैं। आखिर आतंक से कब तक त्रस्त रहेगा हमारा देश। हमारे सियासतदां इस मुद्दे पर हमेशा कथनी और करनी में अन्तर करते हैं अब तक उन्होनें क्या सख्त रवैया अपनाया- ये सारे देश के सामने है। हम बार-बार आतंक का शिकार हो जाते हैं। हमारी छवि आतंकवाद के विषय में एक कमजोर रूख बात करते हैं फिर सब भूल जाते हैं। शायद इसके लिये भी एक जनान्दोलन करना पड़ेगा तभी हमारे सियासतदारों के ऊपर कुछ प्रभाव पड़ेगा। सावर्जनिक स्थलों पर विस्फोट के बाद सुरक्षा बढा दी जाती है और सन्दिग्धों के स्केच ऐसे जारी किये जाते है जैसे कि आतंकी सड़क पर टहल रहें हैं। नेताओं की निन्दा और हमदर्दी जताने का दौर शुरू हो जाता है।काश हमारी सरकार को ऐसी आतंकवादी घटनाओं से प्रत्यक्ष रूप से पी्ड़ित लोगों के पीड़ा की अनुभूति होती और वह हमारे देश में अमेरिका की भांति सुरक्षा के कड़े मानक लागू कर पाती।देश की सुरक्षा के लिये जाति भाषा धर्म तथा दलगति राजनीति से ऊपर उठ कर कुछ सख्त फैसले ले पाते । अब तो कुम्भकरर्णी नींद से जागिए ! देशवासियों की नजर आप से आस लगाये है,कहीं ऐसा न हो कि बहुत देर हो जाय्।आखिर कब तक रहोगे मौन ? कब तक खोते रहोगे देश का अमन चैन ? अमेरिका ने सख्ती की तो दूसरी आतंकी घटना नही हुई। लेकिन हमारे देश में एक के बाद एक घटनायें इस बात की साक्षी हैं, कि हमारे नेताओं को बयानबाजी और ज्यादा से ज्यादा मुआवजा देने के अलावा कुछ नही आता।
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