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हमारी राजभषा हिन्दी ।

जनदर्पण
जनदर्पण
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मेरे देशवासियों आप सबको हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई। आप सबको पता है। हमारे देश को जब आजादी मिली तो राष्ट्रभक्तों ने हिन्दी की सर्व-ग्राह्यता को देखते हुये संविधान में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया था। संविधान में छब्बीस सितम्बर उन्नीस सौ उनचास को हिन्दी को राज भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था। आइए हिन्दी को थोड़ा ऐतिहासिक रूप से भी देखते हैं।
ग्रीक निवासियों ने सिन्धु नदी को इन्दोस, सिन्ध प्रदेश मे रहने वालों को इन्दोई व सिन्धप्रदेश को इन्दिके या इन्दिका कहा जो आगे चल कर इन्डिया बन गया। अरब निवासियों ने सिन्ध प्रदेश को जीत कर उसे हिन्द कहा और हिन्द के निवासियों को हिन्दी कहा।
कवि अमीर खुसरो के समय में हिन्दी से अर्थ भारत में रहने वाले मुसलमानों से था। उन्होने हिन्दी और हिन्दू का अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखा है, कि बादशाह ने तो हिन्दुओं को तो हाथी से कुचलवा डाला,परन्तु मुसलमान जो हिन्दी थे वो सुरक्षित थे। कहने का तात्पर्य है, कि भाषा के अर्थ में हिन्दी नाम मुसलमानों की देन है।
इसी अर्थ में कवि इकबाल ने हिन्दी शब्द का प्रयोग किया है- हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा ।
भाषा के बहुत इतिहास में न जा कर आज हमारे लिये यह विचारणीय प्रश्न है, कि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी की क्या दशा है। दुनिया मे सभी देशों की अपनी भाषा है, लेकिन हमारे देश की स्थित इस विषय मे बहुत विचित्र है, अपनी भाषा होते हुए भी हम आज विदेशी भाषा के गुलाम हैं। हमारा पड़ोसी चीन अपनी भाषा के प्रति जो सम्मान रखता है उससे भी हम सीख नहीं ले सके,क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय स्तर के ओलम्पिक खेल का पूरा संचालन चीन ने चाइनीज भाषा में ही किया था। लेकिन हम आज तक आजादी के इतने साल बाद भी अपनी राज भाषा को संसदीय, अदालती, व व्यवहार में राज-काज की भाषा नहीं बना सके। भाषा के स्तर पर राज भाषा के स्वाभिमान के गरिमा की ऐसी उपेक्षा विश्व के किसी भी देश के भाषायी इतिहास में देखने को नही मिलेगा।
संविधान के अनुच्छेद 343 में उद्धृत है, कि (1) संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । अनुच्छेद 351 में उद्धृत है, कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढाये,उसका विकास करे जिससे वह भारत की समाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप ,शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहॉ आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।
लेकिन संविधान के इस अनुच्छेद का पालन और हमारे राष्ट भाषा के समृद्धि के लिए आजादी से लेकर आज तक सरकारों ने कितना प्रयास किया है ? यह हम सब के सामने है।हाँ सितम्बर माह में हिन्दी दिवस व हिन्दी पखवारा मनाकर और उसके बाद उसे भूलकर उसे दोयम दर्जे की भाषा के स्थान पर रख कर श्राध्द की भाँति अगले वर्ष के सितम्बर माह तक के लिए प्रतीक्षारत स्थान पर बैठा देते हैं। देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के चौंसठ वर्षों के बाद भी हमारी सरकारें राजभाषा को दोयम दर्जे के स्थान पर रहने को विवश किए हुए हैं। अब तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिन्दी को मान्यता मिलने लगी है। जिसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय बधाई का पात्र है। हम सबको कम्प्यूटर पर हिन्दी में की-बोर्ड उपलब्ध कराने वाले आईटियन वैग्यानिक डाक्टर आर.एम.के.सिन्हा को कोटिश: धन्यवाद जो आज हम हिन्दी भाषी कम्प्यूटर पर भी देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा की अभिब्यक्ति कर पा रहे हैं।
राष्ट्रभाषा का महत्व महात्मा गाँधी के इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि-
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।
इसी प्रकार भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने कहा है कि-
निज भाषा उन्नति अहै,
सब भाषा कै मूल्।
बिन निज भाषा ग्यान,
मिटै न हिय कै शूल्।

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