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कहाँ हो मानवाधिकारों पर,
आप शोर मचाने वालों।
तोड़ो मौन, पुकारें नालन्दा की अबलायें,
आप जड़ रक्खे हो क्यों मुँह पर ताले?
आपने भी वे करुण द्र्श्य देखे होगें।
महिलाओं को लाठी से पिट्ते,
पुलिस के बर्बरता के डंडे पर,
अबलाओं को भूमि पर घसीटते।
हमने सौंपा रक्षा के लिये था,
जिनको अपना गाँव-शहर।
कायर हो वे अबलाओं पर ढाते हैं कहर,
संवेदना मर गयी इनकी,
खेलें खुले आम खेल बर्बरता का,
निन्दा जितनी भी हो कम है,
ए काम है जो कायरता का,
कैसा कटु सच है खाकी का,
लोकतन्त्र के लोक को पीटें,
ए सदा अपनी मर्जी का,
प्रत्यक्ष है सबकुछ फिर भी,
अब क्या प्रमाण चाहिये,
कहाँ सो रहे सियासतदां,
आप अब तो नींद से जागिये,
पकड़े आंतकी-अपराधी को भी ,
सड़क पर न मारा होगा ऐसे,
इन अबलाओं को क्रूर हो मार रहे थे जैसे,
आंतकियों -अपराधियों के लिये,
मानवाधिकारों की बातें करने वालों,
इन अबलाओं पर हुई बर्बरता पर भी,
आप थोड़ा तो अपना खून उबालो,
जागें कहाँ है आप बुध्दिजीवीवर्ग,
अबलाएं पुकारती हैं,उन्हे बचा लो।———————— [बिहार नालंदा महिलाओं के ऊपर पुलिस बर्बरतापूर्ण घटना पर]
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