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खिलाएगें तुमको विरयानी, और तुम्हारी फाँसी पर बहस करेगें ।

जनदर्पण
जनदर्पण
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आँचल रंगा है खून से,
मां के आँखों में पानी है,
घायल है माँ भारती,
बम ब्लास्टों की कहानी है।
ए आंतकी विस्फोटी गाने गाते हैं,
फिर हमारे सियासतदां,
जांचो के सुर सजाते हैं।
आंतकियों की पैरवी,
करेंगी अब विधानसभाएं,
देश में बैठे कुछ लोग,
उनके अधिकार गिनाएं।
क्यों है, लाचार कानून व्यवस्था,
कैसी हास्यास्पद ए सुदृढ सुरक्षा।
पूछूँ रही भारत माँ,
कब तक खून बहाओगे
क्या फिर संसद पर हमला होगा,
तो इनको फांसी पर लटकाओगे।
ए उदारता नहीं कायरता है,
पड़ोस में नही दुश्मन,
अब तो घर में ही रहता है।,
सत्तानशीन कहते हैं,
धमाकों में जीना सीख लें।
मरते हैं तो मर् जाएं
जिएं तो जख्मों को सीना सीख ले।
गर ताकत हो तुममें तो,
तुम नेताओं से सीधे भिड़ो।
निरीह जनता को मारके, बनते तीसखां बड़े
जन्मे यहीं खाकर यहीं का,हुए बड़े।
खून बहाना किसी मजहब का,
हो सकता सिध्दान्त नहीं।
प्यार बाटंते सभी धर्म है,
नफरत फैलाना काम नही।
काश हमारी रक्षा भी,
अमरीका जैसी बन पाती।
और हमारे भीतर भी,
राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि है,
ऐसी भावना जग पाती।
जब धर्मनिरपेक्ष है देश हमारा,
तो जाति मजहब बनते- कैसे चुनावी नारा।
जागो जनता जनार्दन जागो,
राष्टहित पर, अपने सारे हित त्यागो।
कौम कोई भी हो ,
लहू का रंग तो लाल ही होगा।
चाहे जितनी मौते हो जाये,
बस जाचों का दौर चलेगा।
क्षमा-याचना की सियासत होगी,
उन्हे जेलों में सुरक्षित ठौर मिलेगा।
हम जनता की मेहनत का धन,
तुम्हारी सुरक्षा पर खर्च करेगें
खिलाएगें तुमको विरयानी,
और तुम्हारी फाँसी पर बहस करेगें ।

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