Menu
blogid : 6156 postid : 208

राजनीति करते नेता पर नीति से विरक्त रचाते हैं।

जनदर्पण
जनदर्पण
  • 48 Posts
  • 572 Comments

कानून बनाने वाले ही ,
हर रोज इसे झुठ्लाते हैं।
लाख घोटाले करते हैं, फिर
न्याय को धता बताते हैं।
राजनीति करते नेता पर,
नीति से विरक्त रचाते हैं।
हित साधते हैं अपना,
जनता की बली चढाते हैं।
तुष्टीकरण की राजनीति में,
बस कुर्सी की महाभारत है।
वोट बैंक के खातिर ये,
देश का हित ठुकराते हैं।
पुलिस भी डन्डा भाजें है,
गरीब और लाचारों पर।
बडे-बडे घिघियाते हैं,
सत्ता के गलियारों में।
गवाह खरीदें जाते हैं,
न्याय भी मोल बिकाता है।
साक्ष्य के अभावों में,
अपराधी यहाँ बच जाते हैं।
निशदिन भाषण समता पर,
जनता की भीड बढाते हैं।
सत्ता पाते ही मत्रीं जी,
धन कुबेर बन जाते हैं।
योजनायें फाइल मे धूल फाँकती,
मेजों की शोभा बढाती हैं।
वो विकास विकास चिल्लाकर,
कर्ज पर कर्ज लिए जाते है।
सीमा पर आतंक छाया है,
दुश्मन बारुद बिछाते है।
हम समझौता समझौता रट,
वीरों की जान गँवाते हैं।
अब्दुल गान्धी सुभाष तिलक की,
देश को आज जरुरत है।
जो देश के लिए जन्मते हैं
देश के हित मर जाते हैं।

netaji

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh