जनदर्पण
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इस शारदीय नवरात्र में,
आवह्नन तुम्हारा मात है।
मन मन्दिर विराजे आप मां,
भक्तों में जगाएं सत्य और विश्वास माँ,
तुम्हारे ए नौ रूप माँ
सुन्दर अतुलनीय अनूप मां
कैसे करूं तेरी अर्चना
अग्यानी है मेरा मना
अंश्रु जल से धोऊं चरण
भावो के सुमन से तेरा वरण
जग भले न मेरे साथ हो
तेरी ममता का मेरे सिर हांथ हो
हे जग जननि हे, शिव प्रिये
फिर धरा पर आ भक्तों के लिये
जन्में है दानव बहुत
त्रस्त हैं मानव बहुत
गली गली में रावण, दुशासन है माँ
यहां रोती विलखती हैं द्रोपदियां
भक्तों की रखिये लाज मां
सत्य के सिर जीत का ताज माँ
विजय दशमी फिर मने
हर्षित हो जाएं सब जने
बस इतनी सी है, याचना
माँ भारती का हरिये सब ताप माँ
हम सब माँ फूलें-फलें
मन में भक्ति का तेरे दीपक जले
गूँजती रहे शब्द वन्दना
चहुं दिशाएं करे तेरी प्रार्थना।
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