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भारत देश के विभिन्न प्रान्तों मे वहां की स्थनीय परम्पराओं के अनुसार कार्तिक माह में कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवाचौथ का व्रत सुहागिनों द्धारा पति की दीर्ध आयु की कामना के लिये बड़े धूम-धाम से किया जाता है।स्थानों की भिन्नता के कारण व्रत की पूजा विधि भले ही अलग-अलग हो परन्तु पूजा में आराध्य त्रिलोकीनाथ महादेव और मां पार्वती की आराधना कर अपने पति के स्वास्थ व लम्बी आयु की कामना करना है। करवाचौथ का व्रत महिलाओं के लिये एक तरफ उमंग और उल्लास का दिन होता है, तो दूसरी तरफ पूरे दिन निराहार व निर्जला रह्कर चन्द्र्देव के आगमन की प्रतिक्षा करना और उन्हे अर्ध्य दे कर ही व्रत खोलना होता है ।
बनाव-श्रगांर को महिलाएं अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानती हैं और करवाचौथ ऐसा व्रत है, जिसमें महिलाएं जी भरकर अपनी यह लालसा पूरी कर पाती हैं सुहागिनें नववधुओं की तरह सजती हैं। मेह्दीं की लालिमा से श्रंगार मे जो आभा दमक जाती है वह देखते ही बनती है। इस त्योहार को सुहागिनें समय के बद्लाव के साथ ही फैशन के अनुरूप बड़ी भव्यता के साथ मनाने लगी हैं, हमारा बाजारवाद हर त्योहारों को भुनाता है। विशेष तौर पर महिलाओं से सम्बन्धित त्योहारों के उत्पादों की बाजार में बड़ी मांग रहती है।
भारतीय हिन्दी फिल्मों ने जितना करवाचौथ के व्रत को प्रसिद्धी दिलायी है उतना किसी भी व्रत व त्योहार को फिल्मों में प्रचार –प्रसार नही मिला। हिन्दी फिल्मों ने जो भव्यता इस त्योहार को प्रदान की है, उसका असर समाज के हर वर्ग में अपनी हैंसियत के अनुसार देखने को मिलती है। आधुनिकता और फिल्मी करवाचौथ ने तो पतियों की जेब पर सेंध लगायी है। अब ए भावनाओं और श्रद्धा के साथ-साथ दिखावे और बड़े-बड़े उपहारों के लेन-देन का त्योहार हो गया है।जेवर और साड़ी की बाजार मे छूट की होड़ लगी होती है। और खरीददारों को लगता है, सच में इन उत्पादों मे छूट दी जा रही है। इससे भी ज्यादा व्यूटी पार्लर वालों की चांदी हो जाती है एड्वांस में बुकिंग की जाती है। ऐ धंधा ऐसे जोरों पर चल निकलता है, जैसे डाक्टरों के लिये बीमारी सीजन होता है। मानो ए व्यूटी पार्लर सबको रूप का ऐसे वरदान बांट रहा हो जो ईश्वर के दिये गये रंग-रुप को बदल कर रख देगा। एक जमाना था जब मेहंदी लगवाने को प्रेम व का प्रतीक माना जाता था और मेहंदी के लिये हाथों को दूसरे (विशेषतौर पर किसी लड़के या बाहरी या पर पुरूष के हाथों में देना) उस प्रेम भावना के विपरीत माना जाता जो अपने पति (या प्रेमी) के लिये होती थी । समय बदला मूल्य बदले भाव भी बदले सोच बदली हम जैसे पिछ्ड़े लोग आज भी इस भाव के विपरीत जा कर उन माल व बाजारों मे मेह्दीं के लिये अपना हाथ आगे नही बढा पाये औरों को भले ए गवांरपन लगे पर मुझे इस संकोच में जाने क्यों गर्व की अनुभूति होती है। खैर जो भी हो इस व्रत का जो सार है वो यह है कि सभी सुहागन पत्त्नियां यह व्रत अपने पति के लम्बी आयु की कामना और परिवार की सुख-सृम्रद्धी के लिये करती हैं जिसमें उनका घर परिवार के प्रति समर्पण परिलक्षित होता है, इसमें सन्देह नही किया जा सकता। अब तो पति भी अपनी पत्नी के लिये व्रत रखने लगें हैं, भले ही यह फिल्मों की देन हो पर पति का यह प्यार और समर्पण पत्नी को सुखदायक लगता होगा जिसके आगे सारे उपहार फीके हो जाते होगें और पति को व्रत के रहने में कैसा अनुभव होता है, इस बात का एहसास होता होगा।ऐसे ही एक व्रत हमारे पूर्वांचल में हरतालिका तीज का होता है। जो कि करवाचौथ से काठिन होता है जिसमें चौबीस घन्टे निराहार व निर्जल व्रत रहना पड़ता है। पर उसे करवाचौथ की तरह भव्यता और प्रचार –प्रसार नही मिला। इसी लिये वह पूर्वांचल व जहां पर यहां के लोग निवास करते हैं वहीं प्रचलित है। अन्त में सभी सुहागन बहनों को उनके पतियों को जिन्होने अपनी पत्नी को सम्मान देते हुये उनके साथ इस व्रत को रख कर इसका अनुभव किया और उन्हें भी जिन्होने व्रत नही रक्खा लेकिन अपनी पत्नी को पूरी तरह सहयोग किया इस व्रत को निभाने में और उनके सारे परिवार को भी मेरी तरफ से करवाचौथ की बहुत-बहुत बधाई। इन पक्तियों के साथ—-
जय हो सपरिवार महादेव आपकी,
अमर करें सुहाग सबका,
दें स्वास्थ, सृम्रद्धी सबको,
सच्चे प्रेम को विवाह की बाधें गांठ में,
दम्पत्ति को मुक्त कर दे अहंम के झूठें शान से,
अन्त में कल १५ अक्टूबर हमारे पूर्व राष्टपति माननीय कलाम का जन्म दिन है जिन्होने अपनी कर्मठता व वि्लक्षणता के बल पर इस वाक्य का स्रृजन किया है। ( असम्भव कुछ भी नही) उनकी ८०वीं वर्षगांठ पर उन्हें मै अपनी हार्दिक शुभकामना अर्पित करता है।
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