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मै बीज हूं प्रेम का।

जनदर्पण
जनदर्पण
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Sow-Only-Seeds-Of-Love-Seedling

मै बीज हूं प्रेम का।

मै बीज हूं प्रेम का

अभिलाषा है

भारत के कण-कण में

अंकुरित हो जांऊ

बढूं और बौराऊं

किन्तु यहां तो सब तरफ,

नफरतों की वयार है

जाति भाषा मजहब की

उगी खरपतवार है

समप्रायदायिक्ता की

तेज वारिश है

मैं आहत हूं,फिर भी

सब सहता हूं

इस उम्मीद में

मैं जिन्दा रहता हूं

आशा और विश्वास है

एकता की खाद,

भाईचारे के जल से

हर भारत वासी

मुझे सींचेगा,

इन्सानियत के,

धर्म की वायु

संचरित करेगा मुझमें

कितना वह पावन

सुहाना मौसम होगा,

जब चहुं ओर

एकता का गुल खिलेगा।
प्रस्तुतकर्ता Suman Dubey

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