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कब जागेगी हम भारतियों की गैरत

जनदर्पण
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एक अक्टूबर को दैनिक जागरण में (यथार्थ कोना) में पेज नम्बर- नौ में भाई नदीम जी का लेख तलाश गैरत की – समाज की कुछ ऐसे सच्चाई बयां करता है, जिसे कोई भी झुंठ्ला नही सकता। बडे अधिकारियों का सिपाही से अपने जूते का फीता बंधवाना राजनीतिक मुखिया का सुरक्षा अधिकारी द्धारा रुमाल से जूता पोछंना । किसी मुख्यमंत्री जी के दरबार में धर्म गुरुओं का नंगे पांव उनसे मिलने जाना, जब कि वह खुद जूते सहित विराज मान थे , एक महिला आई एस अधिकारी का पौधा रोपण के दौरान मन्त्री जी को हाथ धुलवाने के बाद अपनी –अपनी रुमाल देने की प्रतिस्पर्धा में अन्य अधिकारियों से जीत जाना और खुश होना। ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिसकी ओर नदीम जी ध्यान आकर्षित करते हैं, जब –जब ऐसी घट्नायें घट्ती हैं। इस लेख में नदीम जी ने बताया की जनता की राय में जिन्होंने ये सब किया उन्हे अपनी गैरत जगाना चाहिये । लेकिन क्या ये सम्भव है । हमारे भीतर क्या जागेगी ये गैरत? आज सबसे अधिक नैतिक मूल्यों का और इसी गैरत का हम सबके भीतर नाश हुआ है। चाहे वह राजनीतिक स्तर पर हो, य समाजिक स्तर, परिवारिक स्तर पर, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हो सबसे अधिक ह्रास इसी का हुआ है। देश को आजाद हुये साठ साल हो गये। परन्तु राष्ट भाषा आज भी सरकारी कामकाज की भाषा नही बन पायी। माननीय न्यायलयों की भाषा नही बन पायी ।हम कहते हैं, अग्रेंजी के बिना हम विकास ही नही कर पायेगें। जब कि हमारा पड़ोसी चीन अपने भाषा के बल पर हमसे अधिक विकास कर रहा है। देश से बाहर क्या सम्मान दिलाने की बात करगें हमने देश के भीतर ऐसी नीतियां बनायी की आज भी हमारी राष्ट्भाषा अँगरेज़ी की दासी सी लगती है। हमारे अन्दर आज तक यह गैरत नही जाग पायी कि माननीय संसद से लेकर माननीय न्यायलय तक सरकारी द्फ्तरों से लेकर प्राइवेट संस्थानों में राजभाषा हिन्दी का वही स्थान होता जो आज अँगरेज़ी का है। अंग्रेजी जिसे जरुरत हो उसे जरुर उपलब्ध करायी जाये। परन्तु राष्ट हम भारतीयों के तथा हमारी राष्टभाषा के नसीब में शायद ही, कभी ऐसा दिन आये। अंग्रेजी आवश्यक है, क्यों कि वह ग्लोबल भाषा बन चुकी है, पर देश के स्तर पर राष्ट्भाषा को दासी बनाकर कदापि नही, लेकिन ये गैरत आज तक हमारे भीतर नही जाग पायी।

नेता नीति से विरक्त हो राजनीति करते हैं। आय से अधिक धन ,घोटाले पर घोटाले करते हैं। खुद को माननीय कहते हैं । परन्तु ससंद व विधान सभा के भीतर हांथा-पाई माइक तोडना, फेंकना वोट के बदले नोट आदि क्रियाकलाप करते हैं। यह सब करते हुये उनके भीतर की गैरत कभी नही जागती, कि उनके द्धारा किये गये इस किय्राकलाप का देश और देशवासियों तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर क्या असर होगा। इसी तरह अधिकारियों की गैरत कभी नही जागती जब विकास की योजनायें कुछ लोगों के मिली भगत से कागजी शेर साबित हो जाती हैं, और व्यवहार में कहीं कुछ भी नही होता। लेकिन उसके लिये आया हुआ धन बन्दर वांट हो जाता है । मनरेगा, स्वास्थ घोटाले व इसी तरह के अन्य घोटाले के माध्यम से देश के विकास का पैसा ड्कारते वक्त ये अपनी गैरत से मुँह मोड़ लेते हैं। सत्य तो यह है कि शिक्षक धर्म गुरु डाक्टर वकील, इन्जीनियर, किसी भी पेशे से जुडा इन्सान हो या वो आम आदमी हो कोई भी गैरत की तलाश में नही वरन सभी को अपने नीहित स्वार्थ हेतु येन केन प्रकारेण अपना काम निकालना है, चाहे व तरीका जायज हो नाजायज हो शिफारिश का हो या फिर अर्थ के माध्यम से हो उसके लिये गैरत जाये या रहे, आज धनवान व्यक्ति की समाज में बडी इज्जत है, वह धन उसने कैसे अर्जित किया यह कोई जानना नही चाहता।हम सब अपनी सन्तान से कहते हैं पढ लिख कर बडे आदमी बनो परन्तु यह नही कहते कि बेटा आप पहले एक अच्छे इन्सान बनिये। परिवार का मुखिया वेतन से अधिक परिवार पर खर्च करता है, तो परिवार वालों की गैरत ये नही पूछ्तीं कि वह धन कहां से लाया। ऊपर की आमदनी गैरत से ज्यादा महत्वपूर्ण है । एक दिन हम अपने एक परिचित के साथ उनके परचित एक अफसर के यहां मिलने गये , तो उन्होने अपने बेटे से पैर छूने को कहा तो उसने नमस्ते किया तो अफसर महोदय ने कहा, कि आज कल के बच्चों को पैर छूने में काम्पलेक्स लगता है तो हमारे साथ जो सज्जन थे काफी वरिष्ठ थे उन्होने तपाक से कहा, जब तुम वेतन से अधिक रिश्वत एकत्रित करते हो तो तुम्हारे बेटे को काम्पलेक्स नही होता होगा क्यों ? आज़ ये समाज की सच्चाई है ये गैरत ईमानदारी देश के प्रति कर्त्वय अपने विभाग के लिये जिम्मेदारी का निर्वहन चन्द लोगों के पास सीमित रह गया है, और जिनके पास है वो उत्पीडित हो रहा है। लोग उसका माखौल उडाते हैं , सत्यमेव जयते शब्द एक दूसरे को उपदेश देने के लिये लोगों ने सँभाल कर रखा है। स्वंय के लिये उसकी आवश्यकता नही है। काश प्रत्येक स्तर पर हम अपने गैरत को जगा पायें आज हर भारतीय को इसकी महती आवश्यकता है, कि वह व्यक्तिगत स्तर से लेकर राष्टीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने भाषा संस्कारों मूल्यों से समझौता न करे और अपने स्वाभिमान ,गैरत को जगाये और बनाये रखकर देश और समाज के विकास मे अपना योगदान दे।

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